Friday, 10 November 2017
Thursday, 9 November 2017
... डिगाने ...
मुझे आदत है दूर जाते अहसास भुलाने का,
मौसम बदलने और छोड़ जाते इंसानों का,
गुजरते वक़्त में रूठ के अहसान जाताना,
मंजिल दीखते ही मुड़ जाते बेईमानों का।।
पर गम नहीं इस बेरुखी का ज़माने की,
महसूस होती है कमी अब उस खजाने की,
मेरी बातों में ना जाने ऐसी क्या कमी थी,
कोशिश भी नाकाम उस ज़िद को मानाने की।।
लेकिन समझदारी है अक्सर सच्चाई अपनाने में,
छोटी-2 खुशियों से जीवन को सजाने में,
मुश्किल तो है सांस लेना भी इस डगर आके,
हरकत तो हमेशा होती ही है इंसान को डिगाने में।।
अब चुप रह और मुझे भी चुप रहने दे,
ये लहू भी चुपचाप यूँही अब बहने दे,
पहचान सके तो पहचान लाल रंग अब तो,
रोक दे या आदत है तुझे तो मुझे भी सहने दे।।
Saturday, 4 November 2017
### दिलासा...###
उड़ने को ले आया लिबास नया,
दिखावे से ही करने सबकुछ बयां,
भीतर की कमियों को रख किनारे,
मुश्किलों का सामना कर पाउँगा क्या।
मुकरा भी हूँ कई बार इस राह में,
अंदाज़ा लगा अब नए हिसाब में,
गिरा तो फिर हो गया खड़ा भी,
हार तो कभी जीतने की चाह में।
हिस्सा बना यहाँ हर किसी के दर्द का,
कारण बनके कभी तो कभी बना मर्ज़ सा,
मुमकिन है मेरा अब तो टूट भी जाना,
लेकिन फिर हुआ एहसास मुझे फ़र्ज का।
फिर होके तैयार लेके नयी अभिलाषा,
शामिल हुआ भीड़ में बदलने को परिभाषा,
कभी उड़ा हूँ कभी हूँ तैरा कभी रेंगता सा,
किए ग़ुनाह उड़ने को तो कभी दिया दिलासा।
दामन को साफ़ रखूँ यही है मेरा इरादा,
कोशिश कभी कम तो की कभी है ज्यादा,
क़ाबिल हूँ कब तक इसका पता नहीं,
लेकिन जी जान से जुझुंगा यह भी है वादा।
Wednesday, 1 November 2017
## जीत ख्यालों की ###!!!
ख्यालों का हूँ बादशाह मैं,
करता हूँ ज़माने की तस्वीर बयान,
जीवन में मुश्किल, मुश्किल में जीना,
छोटी-२ बातें बन जाती है दास्तां यहाँ।
दुनियां को समझाने को मरा हूँ कई बार,
मौत से डरा नहीं पर जीवन से मानता हूँ हार,
समझाने के लिए हारना, झुक जाना भी है जीत,
मात्र यही है मेरे जीने का और मरने का सार।
मुड़ जाने की बात कभी न करना,
उठ जायेगी तलवार ये वरना,
डटा रहता हूँ मैं जिद्दी बहोत हूँ,
सिखा है मैंने शांत रहना और कभी न डरना।
मुस्कुरा कर ही लौह बेड़िया को तोडना,
ठहरना, फिर भी मुसीबतों से मुँह न मोड़ना,
अलग-२ किस्से कहानियां मैं जीता हूँ,
और अंत में उन सबको एक साथ जोड़ना।
Thursday, 26 October 2017
### बेहतर कौन ...
उम्दा था विचार मेरा लेकिन मेरे मायनो में,
और हो न सकी शर्त पूरी दुनिया के आइनों में।
रुक गया फिर सोचने और रह गयी बात अधूरी,
कोशिशें भी न हुई मुकम्मल, जो थी बहोत जरुरी।
सुना है परिंदो पे किसी का जोर नहीं है चलता,
और इनके हौसलों का कभी सूर्य भी नहीं है ढलता।

और इसी भरोसे में मैं भी कुछ बढ़ता चला गया,
सैकड़ों जिद्द लिए बेवज़ह ही उड़ता चला गया।
विशाल हो कितना भी पर इंसान बहोत है लाचार,
पर फिर भी पीछे न हटे करने सपनो को साकार।
कभी खुद से तो कभी खुदा से अक्सर ये डरता है,
लेकिन काम आये किसीके ऐसा क्यों नहीं करता है।
परिन्दे ही है बेहतर जो टूटा घर फिर से बनाएं,
न की इंसान के माफिक बदले की आग जलाएं।
मन मुताबिक न हुई तो कहता सब करते अत्याचार है,
लेकिन खोज से पता चला की इंसान बहोत ही मक्कार है।
Tuesday, 17 October 2017
||||||||||||| जागो अब देर हुई... ||||||||||||
गुनाह अपने अंदर ही पड़ा है,
दर्द हम सबके भीतर भरा है,
कैंडल लाइट लिए दौड़ते सब,
हकीकत देख बस मौन खड़ा है,

भीड़ में बोलना आसान होता है,
भीड़ को कुचले वो महान होता है,
जुर्म की समीक्षा करे बड़े चाव से,
देख अपराध मुँह न मोड़ इसी भाव से,
बड़ी-बड़ी बाते तो मैं भी बोलता हुँ,
क्या खबर जरुरत पे इसे कैसे तोलता हुँ,
अंदर अच्छाई लाने का प्रयोजन करो,
पाप पे तुरंत कुछ नियोजन करो,
अपनी खुशी का रखते कुछ शर्त हैं,
गुनाहो में सने रहने का क्या अर्थ है,
पत्थर के सामने वो सर झुकाते हैं,
सजीव का फिर क्यों दिल दुखते हैं,
निर्जीव को पाने बहोत गतिशील रहे,
वास्तविकता में जीने में क्यों शिथिल रहे ||
Wednesday, 11 October 2017
प्यार बाकी है...
की है बहोत ही मिन्नतें पर आखिरी पुकार बाकी है,
मकसद पूरा करने में जाना की, अभी तो प्यार बाकी है।
किसी को बाँध आया हूँ किसी का अंग लाया हूँ,
लांघ के अब सारी दहलीजें खुद को संग लाया हूँ।
नहीं बचा है अब कोई ऐतवार करने को,
उठ चला हूँ बेबजह ही अब वार करने को।
मुस्कुराहटों में क्या कोई तलवार छुप सकेंगी,
नफ़रतों की आँधी भी नही अब रुक सकेंगी।
आगे बढ़ने का हिसाब रूठ जाएगा,
जीने मरने का मिजाज भी टूट जाएगा,
गर बोल गई मेरी खामोशी किसी रोज़,
किस्से से जिन्दगी, जीवन से हर किस्सा भी छूट जाएगा।
कर चुका हूँ बहोत कोशिशें पर अभी हुँकार बाकी है,
चुन लिया नया ही मकसद, नहीं अब प्यार बाकी है।
Friday, 6 October 2017
### गलती नही समाधान ढूंढो ###
सरकार गलत है पुल चौड़ा करने पे बल नही दिया,
तो लोगों ने भी क्यों एक-दूसरे को कुचल ही दिया।
सरकार के विरुद्ध नारे बहोत ही जारी है,
क्या हर बात पे सरकार की ही जिम्मेदारी सारी की सारी है।
कूड़ा इधर-उधर फेकने को मना किया तो मानता कौन है,
छेड़छाड़, बिजली की चोरी पर वही जनता क्यों मौन है।
मुझे पता है मौत की तुलना कूड़े से करने का अर्थ नही है,
कराहते लोगों की मदद नही, वीडियो बनाना भी क्या व्यर्थ नही है।
आजकल लोग मदद को तो नही पर दंगे को तैयार रहते हैं,
सामने कोई मरे उससे मुहँ मोड़ खुदको होशियार कहते हैं।
कांग्रेस, बीजेपी, आम किसी से कोई वास्ता नही रखता हूँ,
सरकार ही नही, गलती पे किसी का भी रास्ता रोक सकता हूँ।
ओर मैं भी नादान अक्सर सिर्फ बोल के रुक जाता हूँ,
अकेला खुद को जान के, बुराई को टोके बिना ही झुक जाता हूँ।
समाज क्यों अपनी संवेदना आजकल खो रहा है,
रोबोट बनाने की जद्दोजहद में मशीन सा ही हो रहा है।
और गलतियां ही नहीं कोई राह ही तो ढूंढो,
अनदेखा नही हर बात को, समाधान भी तो ढूंढो।
#Elphinstone
#mumbaistampede
Wednesday, 27 September 2017
आबरू-ए-BHU ...
मुश्किल बहोत है और आँखे पोंछता हूँ,
हरकतें ऐसी देख के भी सिर्फ सोचता हूँ,
क्या कहूं अब कहना क्या बाकि है,
लोगों की गलती पे खुद को कोसता हूँ |
क्या मांग थी जिसपे इतना बवाल हुआ,
शिक्षा के भवन पे उठ खड़ा सवाल हुआ,
कुछ लड़को की अक्सर नैतिकता रहती है सोती,
इसलिए शिक्षा मंदिर का यह हाल हुआ |
लड़कियों को बहार जाना से रोकना व्यर्थ है,
लड़को को सदाचार सिखाने का मात्र अर्थ है,
माना बाहर चली गयी छात्रा तो क्या दिक्कत,
लाठीचार्ज करने में भी क्या सामर्थ है |
शिकायत नहीं सुनी गयी तो बात बढ़ी आगे,
प्रसाशन से आश्वासन पाने को छात्र जल्दी जागे,
पर अनुशासन पता लगा की यहां कुछ कठिन है,
क्युकिं सबसे पहले जब कुलपति ही मौके से भागे |
माना कुछ लोग राजनीतिकरण को उतारूं हैं,
तब पर भी क्या पुलिस/प्रशासन वहां सुचारु है,
कारवाई नहीं हुई, सिर्फ हो रही बदनामी है,
क्युकिं लाठीचार्ज जरुरी और सस्ती यहां आबरू है |
उपाय किया जाए क्युकिं बाते बहोत हो गई,
लाठीचार्ज भी हो गया, छात्राएं आहत भी हो गई,
कम से कम छेड़छाड़ की बात तो सही ही है,
मान लिया अब तक चाहे प्रशासन से गलती भी हो गई |
अब कदम कड़े उठे, बहोत ही जरुरी है,
शक नहीं, प्रशासन पे मानता भी पूरी है |
Sunday, 3 September 2017
IT’S A LIFE, NOT A…
Not a game to gain, not a waste to drain,
It’s a thing to respect, a dream to inspect,
Not a statement to object, not a ray to project,
It’s a prestige to maintain, a crest to attain,
Not an exam to top, not a class to drop,
It’s a message to pass, a passage to cross,
Not a party to enjoy, not a moment to cry,
It’s a matter to think about, an existence to doubt,
Not a fuel to fire, not a cab to hire,
It’s a time to feel, a shine to steal,
Not a wealth to show, not an ego to grow,
It’s a liability to mind, a target to find,
Not a water to boil, not a confusion to coil,
It’s a crunch to hamper, a baby to pamper,
Not an eminence to portray, not a god to pray,
It’s a benefit to account, a height to mount,
Not a fuse to trip, not a war to creep,
It’s a beauty to praise, a madness to craze...
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