मुश्किल बहोत है और आँखे पोंछता हूँ,
हरकतें ऐसी देख के भी सिर्फ सोचता हूँ,
क्या कहूं अब कहना क्या बाकि है,
लोगों की गलती पे खुद को कोसता हूँ |
क्या मांग थी जिसपे इतना बवाल हुआ,
शिक्षा के भवन पे उठ खड़ा सवाल हुआ,
कुछ लड़को की अक्सर नैतिकता रहती है सोती,
इसलिए शिक्षा मंदिर का यह हाल हुआ |
लड़कियों को बहार जाना से रोकना व्यर्थ है,
लड़को को सदाचार सिखाने का मात्र अर्थ है,
माना बाहर चली गयी छात्रा तो क्या दिक्कत,
लाठीचार्ज करने में भी क्या सामर्थ है |
शिकायत नहीं सुनी गयी तो बात बढ़ी आगे,
प्रसाशन से आश्वासन पाने को छात्र जल्दी जागे,
पर अनुशासन पता लगा की यहां कुछ कठिन है,
क्युकिं सबसे पहले जब कुलपति ही मौके से भागे |
माना कुछ लोग राजनीतिकरण को उतारूं हैं,
तब पर भी क्या पुलिस/प्रशासन वहां सुचारु है,
कारवाई नहीं हुई, सिर्फ हो रही बदनामी है,
क्युकिं लाठीचार्ज जरुरी और सस्ती यहां आबरू है |
उपाय किया जाए क्युकिं बाते बहोत हो गई,
लाठीचार्ज भी हो गया, छात्राएं आहत भी हो गई,
कम से कम छेड़छाड़ की बात तो सही ही है,
मान लिया अब तक चाहे प्रशासन से गलती भी हो गई |
अब कदम कड़े उठे, बहोत ही जरुरी है,
शक नहीं, प्रशासन पे मानता भी पूरी है |
No comments:
Post a Comment