Tuesday, 17 October 2017

||||||||||||| जागो अब देर हुई... ||||||||||||


गुनाह अपने अंदर ही पड़ा है,
दर्द हम सबके भीतर भरा है,


कैंडल लाइट लिए दौड़ते सब,
हकीकत देख बस मौन खड़ा है,


भीड़ में बोलना आसान होता है,
भीड़ को कुचले वो महान होता है,


जुर्म की समीक्षा करे बड़े चाव से,
देख अपराध मुँह न मोड़ इसी भाव से,


बड़ी-बड़ी बाते तो मैं भी बोलता हुँ,
क्या खबर जरुरत पे इसे कैसे तोलता हुँ,


अंदर अच्छाई लाने का प्रयोजन करो,
पाप पे तुरंत कुछ नियोजन करो,


अपनी खुशी का रखते कुछ शर्त हैं,
गुनाहो में सने रहने का क्या अर्थ है,


पत्थर के सामने वो सर झुकाते हैं,
सजीव का फिर क्यों दिल दुखते हैं,


निर्जीव को पाने बहोत गतिशील रहे,
वास्तविकता में जीने में क्यों शिथिल रहे ||

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