मुझसे गर मेरी पहचान छीन ली,
टूट के बिखर जाऊँगा मैं,
और मौन हूं तो रहने दो क्योंकि,
बोल दिया तो रुक न पाऊँगा मैं।
मेरा भी है मकसद परचम लहराने का,
टोका तो मुकर जाऊँगा मैं,
और कुछ बातें दबानी है क्योंकि,
राज खोल दिया तो बढ़ न पाऊँगा मैं।
पैतरे मुझे भी कई पता है बेईमानी के,
रोका तो सुधर भी जाऊँगा मैं,
और साख मुझे भी बचानी है क्योंकि,
ठुकरा दिया तो कभी जीत न पाऊँगा मैं।
ठोकरे खाई, उठ के कई बार खड़ा हुआ,
सम्भाला तो आगे बढ़ जाऊँगा मैं,
और जख्म कई छुपाने है क्योंकि,
दिखा दिया तो प्रभाव छोड़ न पाऊँगा मैं।
मंजिल की तलाश में भटक के थक गया,
बताया नही तो किधर जाऊँगा मैं।
और इतने में भी अंत न मिला तो,
कम से कम मिसाल ही बन जाऊँगा मैं।
You are a very good writer Deepak...! Keep writing...! Stay blessed Always....!
ReplyDeleteThank you so much Mam...
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