Friday, 14 July 2017

### किधर जाऊँगा मैं ###


मुझसे गर मेरी पहचान छीन ली,
टूट के बिखर जाऊँगा मैं,
और मौन हूं तो रहने दो क्योंकि,
बोल दिया तो रुक न पाऊँगा मैं।

मेरा भी है मकसद परचम लहराने का,
टोका तो मुकर जाऊँगा मैं,
और कुछ बातें दबानी है क्योंकि,
राज खोल दिया तो बढ़ न पाऊँगा मैं।

पैतरे मुझे भी कई पता है बेईमानी के,
रोका तो सुधर भी जाऊँगा मैं,
और साख मुझे भी बचानी है क्योंकि,
ठुकरा दिया तो कभी जीत न पाऊँगा मैं।

ठोकरे खाई, उठ के कई बार खड़ा हुआ,
सम्भाला तो आगे बढ़ जाऊँगा मैं,
और जख्म कई छुपाने है क्योंकि,
दिखा दिया तो प्रभाव छोड़ न पाऊँगा मैं।

मंजिल की तलाश में भटक के थक गया,
बताया नही तो किधर जाऊँगा मैं।

और इतने में भी अंत न मिला तो,
कम से कम मिसाल ही बन जाऊँगा मैं।

2 comments:

  1. You are a very good writer Deepak...! Keep writing...! Stay blessed Always....!

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