कलम में स्याही बहोत फिर भी खून बहाते हैं,
हक की बातें करने वाले किस मुल्क से आते हैं।
छोटी-२ बातें क्यों लहू से बड़ी बन जाती है,
जमीन की लड़ाई के मुद्दे भी फिर तलवार बताती है।
जमीन की लड़ाई के मुद्दे भी फिर तलवार बताती है।
चर्चा हर बात की न्यूज़ वाले हर रोज़ ही देते हैं
गली, मोहल्ले के हालात भी अक्सर ऐसे ही होते हैं।
गली, मोहल्ले के हालात भी अक्सर ऐसे ही होते हैं।
याद करते हैं लोग बहोत सी बात अधूरी सी,
नहीं करते हैं जतन कोई जो हो जरूरी सी।
नहीं करते हैं जतन कोई जो हो जरूरी सी।
नतीज़े की फिक्र के बिना ही आगे बढ़ जाता हूँ,
मुसीबत सामने देख, खुद को कोषता, पछताता हूँ।
मुसीबत सामने देख, खुद को कोषता, पछताता हूँ।
अपना परिचय देना भुला नहीं, अब मैं दे ही देता हूँ,
इंसान हूँ, गलतियां कर करके ही सबक मैं लेता हूँ।
इंसान हूँ, गलतियां कर करके ही सबक मैं लेता हूँ।
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