मुमकिन है कि हो चाहे इंसान जितना भी निर्दोश,
पर फिर भी क्यों खो देता है अक्सर ही होश,
करता भी है जतन अनेको बिना सोचे ही,
और फिर लगा देता है किसी और पर ही दोष।
और चुनता भी है जो राह दिखे इसे आसान,
हमेशा कोशिश भी करता है बनने को महान,
चुक जाता है गर इतने प्रयत्न करके भी,
तो आखिर छूट ही जाती है जीवन की कमान।
फिर याद आया मुझे की भ्रष्टाचार भी तो जरुरी है,
जिसके बिना न्यूज़ चैनल, चुनावी पार्टियां अधूरी हैं,
बड़े पैमाने पर ही नहीं गली-२ इसका बोल बाला है,
कहते हैं लोग की काम निकालने को ये उनकी मज़बूरी है।
नोटबंदी की जाए या की जाए कोई भी नाकाबंदी,
कोई नही तरीका जिससे आये भ्रष्टाचार गुनाह में मंदी,
लोगों के पैतरे बहोत ही अलबेले और अनेकों हैं,
जहाँ वारदात पे नही शराब बंद होने पे होती है बन्दी।
👍👍👍👍
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