### आग का दरिया ///!!!
शमा ने परवाने की क्यों राख मांग दी,
जलते हुए परवाने ने भी फिर आग लांघ दी,
ये देखते हुए सिख लो अब तुम भी एक सबक,
सिर्फ शमा के विश्वास को परवाने ने जान दी।
सब जानता हूँ आग है अक्सर ही आगे इस डगर,
तो भी दुब जाता हूँ प्रेम में खो के क्यों मैं मगर,
विश्वास कर या फिर हो कर लाचार मैं भी यहाँ,
क्यों आता नहीं फिर मुझे शमा परवाने का विचार।
सीख के भी कभी इंसान मानता ही तो नहीं,
प्रेम और विश्वास में फर्क जानता भी तो नहीं,
काट के सर किसीका लाश पे होकर खड़े,
खुद की गलती को भी कभी पहचानता तो नहीं।
यही सब सोच मैंने अपनी भाषा बदल दी,
जितनी भी हो सकी अभिलाषा बदल दी,
और जुटा ली पूरी हिम्मत सामना करने को,
तो मुश्किल ने जिंदगी संग मिल परिभाषा बदल दी।
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