Sunday, 15 May 2016

भावार्थ....


कोशिश करते-2 ही कभी तो तू कुछ पाएगा, 

मन में थोड़ी आस लिए मंज़िल भी पा ही जाएगा,

मतलबी, बेमतलबि इस सफ़र के दो ये फ़साने हैं,
मैं न बदलूँ, तू न बदले ये वक़्त ही बदल जाएगा ।


कहते हैं की कर्म करो फल की चिंता कभी न हो,
तो बिन अर्थ के बताओ की ये जीवन कैसे जियो,
क्या कोई खा सके बेस्वाद खान कभी बेस्वार्थ के,
तो सामर्थ कैसे कोई करे मंजिल हो या स्वास् हो ।


और भटक ही जाता है राही करते-२ जतन अनेक,
तो स्वार्थ ही फिर बल बने और जगे शक्ति व विवेक,
चिंता फिर फल की और मंजिल की भी जरुरी है,
न करो कोई धोका कभी, कार्य हो सदैव ही नेक ।


2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 02 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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