Sunday, 15 May 2016
Thursday, 5 May 2016
आशय...
कमजोर होने का अब मुझे एहसास हुआ है,
जीते हुए भी मरने का विश्वास हुआ है,
खुद की छाया से भागता हुआ सा अब,
भीड़ में अकेलेपन का मुझे आभास हुआ है।
जुड़ के भी अब टुटा हुआ सा क्यूँ,
नींद से जैसे कहीं भागता हुआ सा हूँ,
नही चलता इंसा का बस खुद की ख़ुशि पे,
इससे ज्यादा बयान अब मैं क्या करूँ।
दुसरे की खुशि से सुख का अंदाजा लगाने से,
अक्सर दुःख होता है ऐसा विश्वास जगाने से,
वैसे तो ये ज़िन्दगी थोडा खोना, थोडा पाना है,
और नहीं कटेगा सफ़र सिर्फ बहाने बनाने से।
क्यूँ सोचता कोई बेमतलब की बात को,
आस भी क्यूँ, ढूंढ के पाने ऐसे साथ को,
ढूंढने और पा जाने में कुछ तो फर्क जरूर है,
नहीं तो क्यूँ खोजता कोई दूसरों में अपने जज्बात को।
क्या बताऊँ, क्या सही, क्या गलत इस राह में,
भागते रहना बेमतलबि में, जाने किसकी चाह में।।
जीते हुए भी मरने का विश्वास हुआ है,
खुद की छाया से भागता हुआ सा अब,
भीड़ में अकेलेपन का मुझे आभास हुआ है।
जुड़ के भी अब टुटा हुआ सा क्यूँ,
नींद से जैसे कहीं भागता हुआ सा हूँ,
नही चलता इंसा का बस खुद की ख़ुशि पे,
इससे ज्यादा बयान अब मैं क्या करूँ।
दुसरे की खुशि से सुख का अंदाजा लगाने से,
अक्सर दुःख होता है ऐसा विश्वास जगाने से,
वैसे तो ये ज़िन्दगी थोडा खोना, थोडा पाना है,
और नहीं कटेगा सफ़र सिर्फ बहाने बनाने से।
क्यूँ सोचता कोई बेमतलब की बात को,
आस भी क्यूँ, ढूंढ के पाने ऐसे साथ को,
ढूंढने और पा जाने में कुछ तो फर्क जरूर है,
नहीं तो क्यूँ खोजता कोई दूसरों में अपने जज्बात को।
क्या बताऊँ, क्या सही, क्या गलत इस राह में,
भागते रहना बेमतलबि में, जाने किसकी चाह में।।
Monday, 2 May 2016
मानसिकता ...
जरूरतों के मुताबिक कोई बेईमान क्यों,
दिखा देता भीतर बैठे शैतान को क्यों,
क्यों मान लेता नकली दुनिया को सच,
करता कृत्य समाज बर्बाद करने को क्यों।
बिजली की चोरी हो रही है सरेआम,
रोके कोई तो फिर होते हैं कत्लेआम,
पता नहीं जन यहां व्याकुल है या कपटी,
तब तो नेता, चोर, हर आम है एक समान।
कुछ हैं बेरोजगार, जुर्म करने को लाचार,
क्यों नहीं आता इन्हें स्वेत और शांति का विचार,
मांगता ये चन्दा करने को जरूरतें पूरी,
देखा नहीं जिसमे शिक्षा ना ही शिक्षण का आचार।
आज पैदा हुआ भी बदल रहा बिजली के तार,
टोके कोई तो फिर मुड़के करता भी है वार।
गाली देने को यहां मिलते हैं लोग अनेक,
नेता गलत, सिस्टम गलत सब हैं यहां एक।
लेकिन आगे कोई ना आए लेके यहां मशाल,
मानसिकता बदले तो आएगा बदलाव यहां विशाल।
दिखा देता भीतर बैठे शैतान को क्यों,
क्यों मान लेता नकली दुनिया को सच,
करता कृत्य समाज बर्बाद करने को क्यों।
बिजली की चोरी हो रही है सरेआम,
रोके कोई तो फिर होते हैं कत्लेआम,
पता नहीं जन यहां व्याकुल है या कपटी,
तब तो नेता, चोर, हर आम है एक समान।
कुछ हैं बेरोजगार, जुर्म करने को लाचार,
क्यों नहीं आता इन्हें स्वेत और शांति का विचार,
मांगता ये चन्दा करने को जरूरतें पूरी,
देखा नहीं जिसमे शिक्षा ना ही शिक्षण का आचार।
आज पैदा हुआ भी बदल रहा बिजली के तार,
टोके कोई तो फिर मुड़के करता भी है वार।
गाली देने को यहां मिलते हैं लोग अनेक,
नेता गलत, सिस्टम गलत सब हैं यहां एक।
लेकिन आगे कोई ना आए लेके यहां मशाल,
मानसिकता बदले तो आएगा बदलाव यहां विशाल।
मानसिकता बदले तो बदले समाज
बहुत दुःख होता है जब लगता है की सुनने वाला सुन्ना ही नहीं चाहता, किसी कार्यवाही की संभावना तो तब बने जब कोई काम करने की मनसा रखता हो, अपने हर एक कृत्य में खुद को गुनहगार समझता हूँ, क्युकिँ गुनाह का साथ नहीं दे रहा ना ही किसी भी प्रकार से भागीदार हूँ लेकिन देख रहा हूँ की हो रहा है और शांत बैठा हूँ तब भी किसी न किसी मायने में गुनाह का भागीदार तो हूँ ही, और कोई नई बात नहीं लिख रहा बल्कि ध्यान आकर्षित कर रहा हूँ की क्यों चुप है हम |
एक वाकये से बयान करता हूँ कुछ वर्ष पहले मैं एंट्रेंस एग्जामिनेशन के लिए बर्नपुर, वेस्ट बंगाल गया था, दूर के किसी रिश्तेदार के यहां ठहरा था गर्मियों के दिन थे, दो दिन पहले पहुंच गया था, एक शाम किसी कारण बिजली चली गयी और कोई छुट्टी का दिन था, गर्मी के मारे हालत खराब थी, रात भर बिजली नदारद रही, बड़ी मुश्किल में रात कटी, रात भर सोचता रहा की अगर घर पे रहता तो कुछ न कुछ जुगाड़ से काम हो ही जाता, सुबह उठ के पता चलता है की अभी और इंतज़ार करना है क्युकिँ सरकारी बिजली कर्मचारी को आने में समय लगेगा, मुझे तो धक्का लग गया, क्या ऐसा भी कोई कर्मचारी होता है या उससे बुलाया जा सकता है, तो फिर मेरे घर के आस पास ऐसा क्यों नहीं होता, क्यों लोग खुद ही सारे काम कर देना चाहते हैं, बहुत सोच के निन्मलिखित विकल्प निकले :
१) शायद यहां के लोग हर काम में माहिर हैं,
२) इंतज़ार करना पसंद नहीं करते,
३) क्या कर्मचारी कामचोर हैं या आनाकानी करते हैं,
लेकिन हकीकत कुछ और ही निकली, शाम को ऐसे ही छत पे खड़ा था तो कोई लड़का आके डंडे से तार फंसा के बिजली वाले खम्बे पे लगा रहा है, देखा की सबके तार वैसे ही लगे हुए हैं, लगातार यही दृश्य रोज देखने को मिला वो लड़का आता अपना काम करता और चला जाता, सोचा जब सबके तार लगे हुए हैं तो वो रोज आके अपना तार क्यों लगता है एक दिन लगा के छोड़ भी तो सकता है, कुछ खोज करने पे पता चला की वो बिजली की चोरी कर रहा है और ऐसा करने वाला वो एक नहीं मेरे मोहल्ले के कई लोग हैं|
अब सोचता हूँ क्या मेरी पढाई पैसा कमाने के लिए ही है या मुझे समाज की दशा को सुधारने में भी भागिदार होना चाहिए,
कृपया कुछ सुझाएं|
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