Monday, 2 May 2016

मानसिकता ...

जरूरतों के मुताबिक कोई बेईमान क्यों,
दिखा देता भीतर बैठे शैतान को क्यों,
क्यों मान लेता नकली दुनिया को सच,
करता कृत्य समाज बर्बाद करने को क्यों।

बिजली की चोरी हो रही है सरेआम,
रोके कोई तो फिर होते हैं कत्लेआम,
पता नहीं जन यहां व्याकुल है या कपटी,
तब तो नेता, चोर, हर आम है एक समान।

कुछ हैं बेरोजगार, जुर्म करने को लाचार,
क्यों नहीं आता इन्हें स्वेत और शांति का विचार,
मांगता ये चन्दा करने को जरूरतें पूरी,
देखा नहीं जिसमे शिक्षा ना ही शिक्षण का आचार।

आज पैदा हुआ भी बदल रहा बिजली के तार,
टोके कोई तो फिर मुड़के करता भी है वार।

गाली देने को यहां मिलते हैं लोग अनेक,
नेता गलत, सिस्टम गलत सब हैं यहां एक।

लेकिन आगे कोई ना आए लेके यहां मशाल,
मानसिकता बदले तो आएगा बदलाव यहां विशाल।

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