रंजिश नहीं अब तो कुछ हुंकार कर,कम से कम अपनी जिद्द पे ही उपकार कर,
कम ही सही लेकिन दुरुस्त हो काम तेरा,
शक्ति संजो, और समय देख प्रहार कर।
मूरत पे नहीं अपने साहस पे विचार कर,
दूसरों के नहीं अपने सपने भी साकार कर,
निचा दिखाना और विनाश रहित हो कर्म तेरा,
मंज़िल भटकाए जो वार उसे तू लाचार कर।
मन को तेरे भी हमेशा प्रेम का अधिकार है,
पर दिल से खेलने का आया नया व्यापार है,
तलवार भी नहीं मिटा सकता किसीकी भावना,
तब भी गर हठ न छोड़ा तो ये तेरा अहंकार है।
और क्यों भटक तू राह पकड़े सिर्फ पाने प्रीत को,
क्या कभी किए इतने जतन लेने अपनी जीत को,
बेअर्थ हैं सारी बातें गर मनन तू अब भी ना करे,
तो खो जएगा जैसे लाखों खोए निभाने इस रीत को।
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