गर्दिशों में खोया हूँ तो हुआ है एहसास,
की चैन से ज्यादा ख़ास कोई नहीं है प्यास,
मुसिबतों के दलदल में फंस जानी है एक बात,
हार के टूट जाता है प्राणी करते-2 प्रयास,
सोचा निर्भय हूँ पर एक आहट से डर गया,
थोड़ी सी नफरत से नादान मैं बिखर गया,
झमेलों में वक़्त और कठिन रास्तों के फंस,
अब फूलों पे ओस वजन देख ही सिहर गया,
भीड़ में अक्सर कुछ दूर चल रुक जाना,
मंज़िल न देख, अब कोई बहाना बनाना,
सोचता हूँ ढूँढू कुछ पल खुदको संजोने को,
शाम होते-2 नये दिन के लिए निखर जाना,
अब तू दूसरों की ख़ुशी की कोशिश नहीं,
अपने चैन और ख़ुशी का मात्र प्रयास कर,
जिक्र अपने फिक्र की अब तू बंद कर,
खोने का नहीं खुद के होने का एहसास कर॥
Sunday, 4 October 2015
॥ प्रयास॥॥
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