चलो कुछ हास्य् का पाखण्ड करता हूँ,
उदासी का ज़िक्र और बात बंद करता हूँ,
परंतु खुशि में भी तो आंसूं छलक जाते हैं,
कमजोर और कुछ जालि दिल साथ आते हैं॥
देखो तुम्हारा आग्रह ये कहाँ ले जा रहा है,
मेरी क्रूरता को कुछ और ज्यादा बढ़ा रहा है,
गुस्से और फ़िक्र दोनों के भाव दिख रहें हैं,
पर मेरी तारीफ के शब्द अब कुछ मिट रहें हैं॥
पर वादा है गर इस हंसी से कुछ सफल होगा,
मौन का, मेरी क्रूरता का व्रत भी विफल होगा,
जब तलख ये सिद्ध नहीं, सुन ले मेरे कटु शब्द,
जो लागे चिंता, दर्द या चाहे हों कितने भी अभद्र॥
और कहते हैं न, जो कमजोर करे उसे दूर करो,
चुना मैंने मौन और सुनो तुमभी खुदके क्रूर करो,
अब मुझसे बात करने की बेमतलब जिद्द को रोको,
दिल को ही नहीं, कुछ अपने दिमाग को भी टोको॥
Monday, 12 January 2015
हास्य पाखण्ड॥...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment