Saturday, 31 January 2015

इंसान॥॥॥

क्या अभी बाक़ी है इंसान के कुछ हालात,
या खो गए सारे के सारे ही बचे थे जो जज्बात,
ना है कोई चाह ना ही समझाने का है साज़,
उस कातिल के आने के बस हैं सभी मोहताज़॥

छोड़ दी आस और झूठे दिलासे की जरुरत,
अब तो बस इंतज़ार है की कब आये वो महूरत,
वक़्त के साथ कुछ और भी बेबस हो गए अब,
निराश, फिर धोंका कभी न कभी करते हैं सब॥

क्योंकि रूकती नही ये भूख दरिंदगी की कभी,
बस फैसला कर तू जूझने का आज और अभी,
छुपने से कोई क्या बच पाया है वक़्त की मार से,
तो फिर अब सामना कर और जवाब दे प्रहार से॥

हार की बात हो गर कोशिश हो कभी जीतने की,
जो बिन मेहनत मिले सब तो ये बात है कितने की,
और हारा नहीं है जाबांज़ है इंसान तू गर डता रहे,
सामना किया तो परख हुई बात नहीं ये इतनी ही॥

और अंधेरों से नहीं आईने से भी लड़ना है तुझे,
क्योंकि अहम् है, जो कभी पानी से भी ना बुझे॥

Monday, 12 January 2015

हास्य पाखण्ड॥...

चलो कुछ हास्य् का पाखण्ड करता हूँ,
उदासी का ज़िक्र और बात बंद करता हूँ,
परंतु खुशि में भी तो आंसूं छलक जाते हैं,
कमजोर और कुछ जालि दिल साथ आते हैं॥

देखो तुम्हारा आग्रह ये कहाँ ले जा रहा है,
मेरी क्रूरता को कुछ और ज्यादा बढ़ा रहा है,
गुस्से और फ़िक्र दोनों के भाव दिख रहें हैं,
पर मेरी तारीफ के शब्द अब कुछ मिट रहें हैं॥

पर वादा है गर इस हंसी से कुछ सफल होगा,
मौन का, मेरी क्रूरता का व्रत भी विफल होगा,
जब तलख ये सिद्ध नहीं, सुन ले मेरे कटु शब्द,
जो लागे चिंता, दर्द या चाहे हों कितने भी अभद्र॥

और कहते हैं न, जो कमजोर करे उसे दूर करो,
चुना मैंने मौन और सुनो तुमभी खुदके क्रूर करो,
अब मुझसे बात करने की बेमतलब जिद्द को रोको,
दिल को ही नहीं, कुछ अपने दिमाग को भी टोको॥

Thursday, 1 January 2015

गम।।।

कुछ गमो को मुस्कुराते देखा तो बस थाम लिया,
न संभले चंद गम तो फिर सजा इसे मान लिया,
आईना बदलने से सूरत कभी बदला नहीं करती,
खुद को बदलने चले और हाथों में जाम लिया॥

इन अंधेरों में जब गुम हुआ तो अब ये जाना है,
सबसे मुश्किल इस दुनिया में रूठे को मनाना है,
उजाला अक्सर दुश्मन बन कुछ ऐसा समझाती है,
अपनों से ख्वाइश न हो कोई तो ये सफ़र सुहाना है॥

कोई ना दे साथ यहां तो क्यों कोई लड़ता है,
जब गिर के खुद ही सम्भलना यहां पड़ता है,
सहारे की जरुरत नही किसीको फिरभी लेकिन,
हर एक राह किसी के कारण ही कोई मरता है॥