Monday, 22 September 2014

।।मतलब।।।

बस कुछ बीती यादें हैं जो साथ हैं आई,
भूली थी जो बातें वो हैं अब क्यूँ संग पाई,
खुल के हँसना जहाँ एक रीत थी हमेशा,
व्यस्त ही सही पर ये वो सौगात अब क्यूँ लाई.

ये शब्द बस उसी का परिणाम ही तो है,
ये लिखाई प्रेमियों को एक सम्मान ही तो है,
खुशी बयान करने का एक ये ही तरीका मेरा,
नहीं तो इस मतलब में क्या तो मेरा क्या है तेरा.

अब तो ये सपना ही सही साथ इसे रहने दो,
मरहन ना लगाओ ये लहू बस यूँ ही बहने दो,
खुशी में मुस्कुराता देखा होगा कईयों को वहाँ,
दर्द में खिलखिलाते बहोत कम ही मिलेंगे यहाँ.

कुछ नहीं मिलेगा तुम्हें अब मुझपे नाराज़ होके,
जाओ अपनी चुनी राह पे और चुनो जाके धोंके,
बस गर थम जाओ तो साथ मेरा पाओगे आगे,
पर चुमंतर हुआ अचानक अगर तुम नींद से जागे.

इतनी कठिन बातें करने की कोई आदत नहीं है,
मुझसे नफरत करें यहाँ सब इतनी इबादत ही है,
अपने दुःख पे ज़िक्र करो तो मरहन बन जाउँगा,
मेरे दर्द में दखल दिया तो दुश्मन बन के आऊँगा.।।

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