Sunday, 15 June 2014

|||||| प्रतिवाद ||||||

कभी पीता तो नहीं हुँ,
होश में भी रहता नहीं हुँ मैं,

सपनों में खोया रहूँ हमेशा,
पर सोता भी कहाँ हुँ मैं,

सामने दिखती है मंज़िल धुँधली,
रुका हुआ हुँ, पर चलता नहीं हुँ मैं,

आशाएं लिए लाखों इस जहाँ में,
और पल भी बचे नहीं हैं मेरे,

लोभ में प्यार के फिरता हुँ,
ऐतबार है नहीं रिश्तों पे मगर मुझे,

बेमोल सा भटकता हुँ हर कहीं,
इस तरह बिकता है हर लम्हा मेरा,

झुकना सीखा ही नहीं किसी मोड़ पे,
पर सर कटाने को डरता भी हुँ मैं,

जुबान पे एक ताला सा है,
पर चुप भी रहता नहीं हुँ मैं ||

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