Sunday, 3 August 2014

..................सिगरेट.............

पीते-पीते ये फुहार हुई,
ना जाने कैसी पुकार हुई,
सिगरेट के हर कश में जैसे मेरी दुनिया पार हुई,

जलते-जलते समझाए सबको,
जीने की क्यों अब तलब मुझको,
जब बनना ही है राख अंत इसीलिए मुँह से लगाया इसको,

जीते-जीते अब ये जाना है,
जिनको जीवन में अपना माना है,
साथ छोर जायेंगे सब पर ये है तेरे साथ क्युंकि इसको बेजान बनाया,

चुन-चुन दिल ये लगाया है,
हर मोड़ ही अकसर चोट खाया है,
जिस हालत में भी जिया हुँ इसने मेरा पूरा साथ निभाया है,

छड़ दे छड़ दे ये चीत्कार हुई,
दोस्तों की जैसे एक हुंकार हुई,
ज़िन्दगी अपनी करली झंड और फिर भी ना टूटे तेरा ये घमंड,

फूंकते-फूंकते अब मै भी थक गया,
ताने सुन-सुन बहोत ही पक गया,
सुट्टा लिए हाथ अब करता हुँ एलान की आगे से पिने का नही बनेगा प्लान,

आँखों-आँखों में बातें बड़ी नेक हैं,
इसको छोड़ने के तरीके एक से एक हैं,
अब लगने लगा है डर की पैदा ना हो जाये नफरतकहीं मेरे भी अंदर,

रुकते-रुकते अब पहुंच ही गया,
निकोरेट्ट लेने का अब सोंच ही लिया,
श्याम पान भंडार देख रुक जरा चिल्लर टटोलने को, थोड़ा होंठो को सिकोड़ने को,

देखते-देखते मै निकल गया आगे,
उषा मेडिकल के लिए बढ़ गया जाके,
पीछे मुड़ा तो श्याम भी मुझे देखे उधार वाली मेरी पर्ची अपने हाथो में लेके ||